- उजालों के कफ़न से लिपटकर जब शाम तन्हाई में रोती हैं तो सरसराते पत्तों के झुरमुट से सूरज की आखिरी किरण भी अस्त होते हुए जैसे अपने चले जाने का पैगाम दे जाती हैं और बहुत दूर कही बांसुरी की मधुर तान पर गाय चारा रहा चरवाहा को अचानक याद आता हैं कि अब उसके घर लौटने की बेला आ गई हैं
- ख्वाबगाह को मेरी वो, उनकी यादों से रोशन करते रहे
चाँद हँसता रहा ये देख , मौसम रंग बदलते रहे
मंजरी - उसका आँसुओं से ,धुला हुआ चेहरा
मुझे इक, पाक किताब लगता हैं
वो खफा हैं, मोहब्बत नहीं हैं मुझे उससे
उसे खोने का डर, बेहिसाब लगता हैं
आँसुओं के सैलाब, में रोज बहता हूँ मैं
अब तो मझदार भी, किनारा लगता हैं
मंजरी - याद उसकी दिल से मैं जितनी मिटाता आया
नज़र में था वो पहले अब रूह में घर बनाया
मंजरी — with Vinod Dubey.
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