- धुएँ के बादलों में ढूँढने से क्या हासिल होता
मैं बन के चिंगारी पर सुलगता चला गया
मंजरी - उस राह पर आज तक
निःशब्द असहाय और अकेली
बैठी हुई पथ के कांटे चुन रही हूँ मैं
जिस पर त्याग गए थे महर्षि गौतम
सदिओं पहले अहिल्या को ...
श्राप देकर पाषाण की प्रतिमा
...See More Manjari Shukla shared a link.
http://www.livehindustan.com/nandan/1.html .........u can enjoy my story " indradhanush " here (first story_- ना थमा था ना थमा हैं तेरी यादों का सफ़र
था यही सामान जो तू साथ ना ले जा सका
मंजरी
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