- आँख भर आती हैं मेरी जानकर सबका दर्द
रास्ते ज़िन्दगी के पर उलझा देते हैं मुझे
मंजरी
June
- नियति
हरे और नीले निशान मानो मेरी माँ को सुहाग की निशानी के रूप में विवाह पर ही बतौर तोहफा मिल गए थे I पिताजी का घर आने जाने का कोई समय नहीं था I पर जब हम सो कर उठते तो माँ की कलाइयों में टूटी चूड़ियो के घाव देखकर समझ जाते की रात में ...See More - धुएँ के बादलों में ढूँढने से क्या हासिल होता
मैं बन के चिंगारी पर सुलगता चला गया
मंजरी - उस राह पर आज तक
निःशब्द असहाय और अकेली
बैठी हुई पथ के कांटे चुन रही हूँ मैं
जिस पर त्याग गए थे महर्षि गौतम
सदिओं पहले अहिल्या को ...
श्राप देकर पाषाण की प्रतिमा
...See More Manjari Shukla shared a link.
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