- उजालों के कफ़न से लिपटकर जब शाम तन्हाई में रोती हैं तो सरसराते पत्तों के झुरमुट से सूरज की आखिरी किरण भी अस्त होते हुए जैसे अपने चले जाने का पैगाम दे जाती हैं और बहुत दूर कही बांसुरी की मधुर तान पर गाय चारा रहा चरवाहा को अचानक याद आता हैं कि अब उसके घर लौटने की बेला आ गई हैं
- ख्वाबगाह को मेरी वो, उनकी यादों से रोशन करते रहे
चाँद हँसता रहा ये देख , मौसम रंग बदलते रहे
मंजरी - उसका आँसुओं से ,धुला हुआ चेहरा
मुझे इक, पाक किताब लगता हैं
वो खफा हैं, मोहब्बत नहीं हैं मुझे उससे
उसे खोने का डर, बेहिसाब लगता हैं
आँसुओं के सैलाब, में रोज बहता हूँ मैं
अब तो मझदार भी, किनारा लगता हैं
मंजरी - याद उसकी दिल से मैं जितनी मिटाता आया
नज़र में था वो पहले अब रूह में घर बनाया
मंजरी — with Vinod Dubey.
Earlier in July
- काँच का महज़ टुकड़ा समझ न फ़ेंक मुझको
तेरा साथ पाकर सतरंगी हो जाता हूँ मैं
मंजरी Manjari Shukla shared a link.
आप में से किसी को इस बात पर यकीं नहीं होगा की हमारी आँखें भी झूठ बोलती हैं और आँखों देखि बाते भी सदा सत्य नहीं होती I आज सुबह मेरे साथ एक ऐसी ही घटनी हुई जिसे में आप सबके साथ बांटना चाहूंगी क्योंकि यह सिर्फ यही नहीं बल्कि जिंदगी के हर शेत्र...See More- चाँद और सितारों के ख्वाब ना दिखा मुझको
दिए की लौ में तमाम उम्र गुज़री हैं मेरी ........
मंजरी
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